कृष्णसखा
कहीं नन्हें फुलों सा,
और नीली कलियों सा,
हाथों से सहेजकर,
हवाओं से बचाकर,
संबंधों को सहेजा है मैनें ।
मीठे स्वपनों सा,
अठखेली गीतों सा,
छिप गुनगुनाकर,
उसी हवा को सुनाकर,
सखाओं संग गाया है मैनें ।
जब कभी टुटे माला सा,
बिखरे मोती फुलों सा,
अनुभूति की डोर सजाकर,
फिर एक माला में बुनकर,
गोकुल में पहनाया है मैनें ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ती है भावो की…
मीठे स्वपनों सा,
अठखेली गीतों सा,
छिप गुनगुनाकर,
उसी हवा को सुनाकर,
सखाओं संग गाया है मैनें ।
शानू
अच्छा है गीत!
बढ़िया है.
A sweet one.
मधुर अभिव्यक्ति.