कृष्णसखा

कहीं नन्हें फुलों सा,
और नीली कलियों सा,
हाथों से सहेजकर,
हवाओं से बचाकर,
संबंधों को सहेजा है मैनें ।

मीठे स्वपनों सा,
अठखेली गीतों सा,
छिप गुनगुनाकर,
उसी हवा को सुनाकर,
सखाओं संग गाया है मैनें ।

जब कभी टुटे माला सा,
बिखरे मोती फुलों सा,
अनुभूति की डोर सजाकर,
फिर एक माला में बुनकर,
गोकुल में पहनाया है मैनें ।

5 comments so far

  1. sunita(shanoo) on

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ती है भावो की…

    मीठे स्वपनों सा,
    अठखेली गीतों सा,
    छिप गुनगुनाकर,
    उसी हवा को सुनाकर,
    सखाओं संग गाया है मैनें ।

    शानू

  2. अनूप शुक्ल on

    अच्छा है गीत!

  3. समीर लाल on

    बढ़िया है.

  4. Juneli on

    A sweet one.

  5. संजय कुमार शुक्ल राजन on

    मधुर अभिव्यक्ति.


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