भगवानजी का प्रसाद ( एक छोटी कहानी )

उस दिन आकाश का आठवां जन्मदिन था । घर में सबसे ज्यादा खुश थी तो उसकी दादीमाँ । उनके ढलते जीवन में एक नया आधार बड़ा हो रहा था । दादीमाँ अपने बेटे शेखर को कहती भी थी कि उसने उसे आज तक दो ही सबसे अच्छी चीजें दी – एक तो उसकी गुजराती बहू, दूसरा उसका पोता आकाश । दादीमाँ को लगता था कि आकाश बिलकुल उसके दादाजी पर गया है ।

वैसे सुबह की पूजा हो या रात में कहानी सुनने का समय, आकाश अपने माँ-पापा से ज्यादा समय दादी के साथ बिताता था । आकाश क्लास में हमेशा प्रथम आता था । सबसे अच्छी बात यह थी कि शाम के समय दादी माँ कुछ किताबें पढ़ती रहती और आकाश वहीं बैठकर होमवर्क भी करता रहता । ज्यादातर घरों में दादी के लाड़-प्यार में बच्चे बिगड़ जाते हैं पर आकाश को लेकर, शेखर को अपनी माँ से कोई शिकायत नहीं रहती ।

शेखर माँ के विचारों से अलग, आधुनिक विचारों को मानने वाला था और अपने ढंग से आध्यात्म का व्याख्या करता था । शेखर नास्तिक नहीं था पर उसका मानना था कि ज्यादातर कर्म कांड और फुल-प्रसाद के देवी पुजन सारे बेकार से है ।

वैसे शेखर ने माँ के कहने पर अपने बंगले के ड्राईंग रुम के पूर्व दिशा की ओर पुजा का एक घर बनवा दिया था । जहाँ आकाश बचपन से ही अपनी दादीमाँ के साथ पुजा में बैठता था (मीठे प्रसाद के लिए) ।

खैर उस दिन घर में शेखर ने आकाश के जन्मदिन की तैयारी ऐसी की थी कि लगता था उस दिन आकाश की शादी होने वाली थी । घर में दोनों फुआ, फुफा, मिनी, रोजी और नन्हा गोपी सब आये हूए थे । छोटे-छोटे बच्चों का इधर से उधर कुदना, उनकी छोटी मोटी शिकायतें और मम्मी लोगों की आज गपशप – माहौल काफी चहलपहल का था ।

आकाश की फुआ आज उसे नई लाल साईकिल भी दे दी थी। नयी साईकिल कोने में रखी थी । फुफेरी बहन मिनी और रोजी ने सारे बैलुन ड्राईंग रुम में सब जगह टाँग दिये थे । हाँ, पंखे पर बैलुन टाँगने के लिए जब जरुरत पड़ी तो मिनी ने अपनी माँ को मेज पर चढ़वा दिया । यह देखकर सब हँसने लगे थे ।

पर आज दोपहर के पुजा के बाद से पता नहीं क्या हूआ, आकाश अपने जन्मदिन पर गंभीर सा हो गया था और आकाश को फुआ ने पुछ भी लिया कि – “क्या साईकिल उसे पसंद नहीं आयी” । पर आकाश ने फुआ को कहा कि “साईकिल बहूत अच्छी है” ।

वैसे, आज शेखर ने अपने बेटे के इस जन्मदिन के लिए विशेष इंतजाम करवाया था । बड़ा वाला केक आर्डर देकर मँगवाया गया । उस पर लिखवाया था Happy Birthday Day to Amit. मेहमानों के खाने के लिए नामी रेस्तरां “शीशमहल” से केटरिंगवाले को बुलवाया गया। करीब 40-50 मेहमान आने वाले थे ।

आरती ने आकाश को पहनायी थी, सिल्क की सुंदर सी शेरवानी । वह छोटा दुल्हा सा लग रहा था । आरती खुद तैयार होकर शेखर को भी नये कपड़े निकाल दी । मजे की बात तो यह थी कि दादीमाँ ने आज खुद निकालकर नयी साड़ी पहनी थी, वैसे बाकी दिनों में आरती को सासु माँ से साड़ी पहनने के लिए कहना पड़ता था ।

सात बजे तक सारे मेहमान आ गये थे । ड्राईँग रुम लगभग भर सा गया था । उपर टंगे बैलुन मेहमानों के सिर से टकराकर लहराते से थे । जगह की कमी के कारण, शेखर के कुछ दोस्त बरामदे पर ही बैठे थे ।

कमरे के बीच में आरती ने केक को बहूत सुंदर ढंग से सजाया था । शेखर के इस बार के सुगंधवाले मोमबत्ती से माहौल काफी खुशनुमा हो गया था । बेटे के जन्मदिन पर उसने आज खर्चे में कोई कमी नहीं की थी । आरती शेखर की ऐसी फिजुलखर्ची पर थोड़ी नाराज भी हूई थी ।

पूरी तैयारी के बीच, अब केक कटने वाला था । बीच में आकाश, एक तरफ दादी माँ दुसरी तरफ आरती और उसके पास में शेखर । मोमबत्ती की रोशनी मे आकाश का चेहरा चमक रहा था । आकाश ने मोमबत्ती को फुँक से बुझाया और सबने गाये हैप्पी बर्थडे वाले गीत ।

“बेटा केक काटो और पहले माँ को दो ” – दादीमाँ कही ।

आकाश बड़े सलीके से केक काटकर अपने माँ के मुँह में केक पहूँचाने लगा । आरती हाथ में उसी केक को लेकर वापस आकाश को खिलायी । यह देखकर सब मुस्कुराने लगे ।

“बेटा अब पापा को” – दादी माँ कह पड़ी । आकाश दुसरा टुकड़ा काटकर पापा को नहीं देकर दादी माँ के मुँह में डाल दी । दादी माँ फिर कह पड़ी – “बेटा पापा को दो… ” ।

आकाश ने केक का तीसरा टुकड़ा काटा और फुआ की ओर हाथ बढ़ा दिया । आकाश ने पापा की ओर देखा भी नहीं । आरती, दादी माँ कुछ समझ नहीं पायी । आकाश सामने खड़े पापा का ऐसा नजरअंदाज कर रहा था – दोनों समझ रही थी पर कुछ कह न पाती थी ।
चौथा टुकड़ा भी कटा और पाँचवा भी । केक पाकर खुश हो गये मिनी और रोजी ।

दादीमाँ कह पड़ी – “बेटा पहले माँ-पापा को केक देते है । वे तुम्हारे जन्मदाता है ना ।”

आकाश दुसरी और देखकर कहने लगा । “हाँ पर यह केक तो उन्होनें मुझे खाने को दिया है ।”

बेटे के ऐसा कहने पर शेखर को बहुत बुरा लगा होगा पर उसे समझ में नहीं आया आकाश ने ऐसा क्यों कहा । मेहमानों के सामने उसने मुस्कुराने की कोशिश तो की – पर उसके चेहरे को देखकर लगता था कि बर्थडे की सारी तैयारी कहीं फीकी रह गयी ।

“बेटा कैसी बातें कर रहे हो ।” – कहकर दादीमाँ फिर बात बदल दी – और हँस पड़ी ।

पर मेहमान कुछ खास समझ न पाये । केटरिंग वाले अपना स्वाद जीभ पर छोड़ गये । लोग गिफ्ट देकर चले गये । सबने खाने की प्रशंसा की थी पर शेखर की तैयारी की तरह ही एकाध बैलुन फट गये थे । कुछ रंगीन फीते जमीन पर गिर थे ।

और मेहमानों के जाने के बाद, बाहर बालकोनी में कुर्सी पर, शेखर गहरे सोच में डूबा हुआ चुपचाप बैठा था । किसी ने एक भी गिफ्ट की पैकेट नहीं खोली । कहीं कुछ गलत हो गया था । और अंदर सोफे पर लेटा था आकाश, और पास में चुपचाप बैठी थी मिनी । दादीमाँ उनके बगल में बैठ गयी । वह जानती थी आकाश को पापा से कुछ हुआ है ।

“बेटा तुमने पापा को वैसा क्यों कहा ? ” – दादीमाँ पुछ ही बैठी ।

“मैनें कहा ना… सब कुछ पापा ने मुझे ही तो दिया, वैसै उन्हें मैं न भी दूँ तो वो बाजार से खरीदकर खा सकते हैं ना । “

आकाश आज अजीब सी बात कर रहा था । दादीमाँ उसकी हथेली सहलाकर कहने लगी – “बेटा तुम ऐसी बातें क्यों कर रहे हो ? “

“अच्छा दादीमाँ आप मुझे बताती हो ना हमारे, आपके, पापाके, मम्मीके ….सबके पिता कौन है – भगवान ना …।” एक सांस में वह कह रहा था । ” …..हम सबके देने वाले कौन है – भगवान ना । “

“हाँ बेटा … ” दादी माँ अब कुछ समझ रही थी । बेटे के मुँह से ऐसी बातें सुनकर आरती साड़ी का पल्लु बाँधे सासु माँ के पीछे चुपचाप खड़ी हो गयी ।

“तो फिर हमलोग रोज भगवानजी को भगवानजी का ही दिया प्रसाद क्यों चढ़ाते हैं ? “

“बेटा मैनें तुम्हे बताया था ना, प्रसाद चढ़ाकर हम भगवानजी के पास आभार प्रकट करते है । खाने की इतनी चीजें देने वाले भगवान जी का क्या पाँच पेड़े या लड्डू से पेट भर जायगा । पर खुद खाने से पहले, खाने की चीजें भगवान को चढ़ाने से मन को शांति मिलती है और भगवानजी खुश होते है । ”

दादी माँ को कुछ कहने का अभी मौका मिल गया । वह आगे कहने लगी – “इसलिए तुम्हें भी पिताजी को खिलाकर केक खानी चाहिए । पापाजी तुम्हारे लिए ही केक लाया थे पर तुम्हें खुद खाने से पहले उन्हें देने से, पापाजी को अच्छा लगता ना । “

“हाँ, तो यही बात पापाजी क्यों नहीं समझते… ” जोर-जोर सो आकाश कहने लगा ।

“जैसे पापाजी भगवान का दिया हुआ खाने का चीज भगवान को नहीं चढ़ाते हैं वैसे ही मैनें भी उनका दिया हुआ केक उनको नहीं खिलाया … ।” आकाश का आवाज में अब एक हल्की कंपकपी सी थी । उसका गोरा सा गाल गुलाबी हो रहा था ।

“पापाजी ने हमारे घरवाले भगवानजी को कभी प्रसाद नहीं चढ़ाये और न ही प्रणाम करके आपसे कभी प्रसाद ली । और आज उन्होनें गोविन्द के लिए कुछ नहीं लाया … ” आकाश की अबोध सी आँखों नें अपनी शिकायतों की पोटली नमीं में भिंगो दी ।

अब दादीमाँ, माँ, फुआ सबको याद आ गयी उस दिन दोपहर का प्रसंग, जब बर्थडे के सामान खरीदने में आज शेखर पूजा का भोग नहीं खरीद पाया और दादीमाँ थोड़ा नाराज हो गयी थी ।

तभी जवाब में शेखर ने भी माँ को सीधे कह दिया था, “……..भगवानजी कभी स्वादिष्ट प्रसाद नहीं माँगते……” ।

और शेखर से ऐसा सुनकर, कई और दिनों की तरह उस दिन भी दादीमाँ डब्बे वाली मिश्री-किशमिश का भोग चढ़ा दी थी । और आकाश ने सब कुछ चुपचाप देखा था।

दादीमाँ बस पोते का मुँह देखे जा रही थी । आरती पीछे खड़ी चुपचाप बस बेटे की बातें सुन रही थी । फुआ ने तो साड़ी का पल्लु होठों में भींच लिया ।

आकाश अब बालकोनी की ओर देखकर कह रहा था – “देखो ना दादीमाँ, मेरे केक नहीं खिलाने पर गुस्सा करके कैसे वहाँ पर बैठे हैं । अब आप बताओ गोविंदजी आज दोपहर को उनपे कितना गुस्सा करते होगें ।” कहकर उसके होठों पर एक शरारत झलक पड़ी ।

सब लोग सामने देख रहे थे बालकोनी की ओर, जिधर से शेखर बेटे की सारी बातें सुन रहा था । आज पैतीस सालों में जो बातें उसने पिताजी से न मानना चाहा था, बेटे ने एक दिन में उससे भी ज्यादा समझा दिया था ।

सबने देखा – शेखर बालकोनी से निकलकर, बायीं ओर मंदिर की और जा रहा था । आज वह भगवान के सामने घुटने टेककर काफी देर तक फर्श पर सिर नवाये रखा । सिर उठाकर हाथों से प्रसाद में चढ़े मिश्री का बचा अंतिम टुकड़ा उठाया, जिसे चीटियाँ उठाकर ले जा रही थी ।

शेखर प्रसाद उठाकर मंदिर से बाहर निकला और वहीं फुआ के साथ सामने खड़ा था आकाश । आकाश के छोटे से उठे हाथ की गोरी अंगुलियों में चिपका था केक का बचा हुआ क्रीम । शेखर को लग रहा था आज उसके बेटे का ही नहीं बल्कि उसका भी जन्मदिन है ।

बेटे की आँखे – बाप से बहूत कुछ कह रही थी । आकाश के उठे हाथ और उसमें चिपके सफेद क्रीम जैसे कह रहे थे – “पापा, आपका प्रसाद ।” शेखर ने आकाश को बाँहों में भरकर उठा लिया ।

उस समय दादीमाँ की नम आँखें एक जन्मदिन मना रही थी ।

7 comments so far

  1. Juneli on

    Many times Kids also teach us a lesson.

    Nice story. Keep it up.

  2. monisa on

    yes very goodness

  3. Roushan on

    kyaa baat hai is blog ko bhula rakha hai

  4. somaya on

    veeeerrrrrrrryyyyyyy long bt NICE

  5. Ravindra Singh on

    I like hindi kahani
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  6. sidharth on

    verrrry veryyyy looooooooooooooooooooond …………………but gooooooooooooood..!!!!!!!!

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