Archive for the ‘मेरी मित्रमंडली’ Category

कृष्णसखा

कहीं नन्हें फुलों सा,
और नीली कलियों सा,
हाथों से सहेजकर,
हवाओं से बचाकर,
संबंधों को सहेजा है मैनें ।

मीठे स्वपनों सा,
अठखेली गीतों सा,
छिप गुनगुनाकर,
उसी हवा को सुनाकर,
सखाओं संग गाया है मैनें ।

जब कभी टुटे माला सा,
बिखरे मोती फुलों सा,
अनुभूति की डोर सजाकर,
फिर एक माला में बुनकर,
गोकुल में पहनाया है मैनें ।

अनुगूँज 22: हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा – पाँच बातें

हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा – पाँच बातें । यह बीस-सुत्री कार्यक्रम जैसे स्टाईल में सजाकर पाँच बातें लिखना भी कसरत सा है, फिर भी चलो कोशिश करते है – बहुत दिनों बाद लिख रहा हूँ ना ।

आलोक जी, वैसे हम अमेरिका नईखे गईले । पर सपने देखने को मौका देने के लिए धन्यवाद , वैसे अपना भी कभी-कभी ऐसा ही मन होता है । लो मैनें आँखे बंद कर ली ।

अभी हमारा हिन्दुस्तान, उफ्फ् इंडिया, अमेरिका या और कुछ लग रहा है पता नहीं । पर बड़ा मस्त सीन बना है जनाब । अब हमें जो दिख रहा है वही बक रहा हूँ ।kshargram Anugunj

1. मेरे पास बैठी है मेरी पाँचवी गर्लफ्रेंड – मिनी । उसका मैं सातवां बाय-फ्रेंड हूँ । कहती है – ” व्हाई टू राईट फार अनुगूँज स्टफ , क्या मिलेगा उसमें तुम्हें । कौन केयर करता है – व्वाट यू राईट और नाट । कम हनी – लेट्स गो फार पार्टी ।” सबको पता है कि हमलोग शादी कभी नहीं कर सकते । अभी हमलोग लिभ-इन हैं । शादी, 40 साल का होऊँगा, तब देखा जाएगा । पर- हमारे पर-दादाजी स्वर्ग से देखकर सोचते होंगे – क्या एक ही पर-दादी के साथ जीवन काटा था उन्होंने, इर्ष्या से जल-भुन गये होंगे ।

2. हमारी अब अपनी कंपनी है – पहले हमलोग सर्विस प्रोभाईडर कंपनी हुआ करते थे । अब हमारी अपनी प्रोड्क्टस है । ब्लाग-नेटवर्किंग पर हमारी बिरादरी का साफ्टवेयर Narad Version 10.5 हमने ब्लागर को बेचा है । साफ्टवेयर में हमारी कंपनी के बारे में सुना तो स्वामीजी अपने प्राईवेट जेट लेकर सीधे झुमरीतिलैया आ बसे हैं । साफ्टवेयर सर्भिसिंग करते-करते गराज के मिस्तरी जैसे हमारी हाथ साफ हो चुकी है । यह अमेरिका वाले इंडिया में अभी बस हार्डवेयर प्रोभाडर कंपनी जैसे है ।

3. अरे भाई मजाक नहीं कर रहा हूँ – हजारों मोबाइल के टावर लगे है – पुरा हाई टेक है । झुग्गी – झोपड़ी में लैपटाप हैं । अब भी झुग्गी ही भोट-बैंक है भाई । सबकी आदर है यहाँ । बिजली के तार और हजारों किलोमीटर लाईन, – कोई जरुरत नाहीं । सबके – सब बन गये हैं सोलर पावर । उर्जामंत्री जी सुर्य भगवान के पक्के पुजारी है । हिन्दुस्तान के दिनों में बिजली के तारों की चोरी से परेशान, उन्ही को स्वपन में सोलर पावर का आईडिया दिखा है । वैसे सड़क की हालत कागजों पर अब भी एकदम झकास है – वास्तविकता की चिंता हमें नहीं हैं – हमारी तो आदत हमेशा से ही ऐसी थी । अब हमलोगों की सड़क यात्रा में फिजीकल फिटनेस हो जाता है ।

4. सड़क यात्रा से याद पड़ा, वैसे भी कौन किसके घर जाता है । हमारी पड़ोस की चाचीजी और उनकी सारी पड़ोसिनें चाट कंफ्रेस करती है । फिर जब किसी को कुछ मौका आता है याद दिलाने का तो पिछला चाट कट-पेस्ट करती है । वैसे उनका आजकल चैट का टापिक है – यादव जी के बेटे की शादी लेकर । अमुक यादव जी की बेटे की शादी , झा जी के बेटी से हो रही है । लगे हाथ कह दू कि आजकल जात-पात वाली बात नहीं है । लेकिन प्राबलम एक ही है – वे कहते है लड़के ने कभी धोती पहनी ही नहीं और लड़की ने साड़ी । एक और प्रश्न यहाँ भी है कि पंडित जी मोबाईल से मंत्र नहीं पढ़ सकते हैं क्या ? ज्यादातर औरतें कंफ्रेस में तो अच्छी बातें बोलती है पर, एक दुसरी की चुगली प्राइवेट मैसेज देकर कर लेती है ।

5. बहुत लिख लिया भैया, भुख भी लगी है । अपने को तो सैंडबीच के ममेरे भाई ‘पावबीच’ से काम तो चलता नहीं सो कुछ पराठे के लिए एस एम एस बगल के होटल वाले को करता हूँ । वैसे ‘पावबीच’ के बारे में क्या बोलुँ मैं – दरअसल आजकल सुबह में मेरी मिनी दो पाँवरोटी – उफ्फ्, दो पावरोटी के बीच में टमाटर – हरा धनिया डालकर खाती है । कहती है कैलोरी कम होता है उसमें । अपने को तो सत्तु घोलकर मिलता नहीं सो हम भी हेल्थ ड्रिंक में सत्तु फ्लेवर डालकर पीते हैं । जब मुझे मन होता है खीर खाने का तो उसे सुपर मार्केट से खरीद लाता हूँ – नानीजी का, पैकेट में बिकता है । आई मिन नानीजी खीर बेचती नहीं । डब्बे पर कंपनी का नाम लिखा रहता है – नानीजी ।

अनूप जी के लिए

प्रिय अनूप जी,

आपका लेख पढ़ा । ऐसे
मैनें वहाँ टिप्पणी तो डाल दी है पर कुछ और लिखना चाहता हूँ ।

आप माने न माने पर एक बात तो सच है भावनाएँ वाई-फाई (wi-fi) होती हैं। इंटरनेट तो बस एक माध्यम हैं । एक तरफ आप किसी खास विषय पर सोचते हैं तो आपका दिल से नजदीकी मित्र आपको याद करता है और उसी विषय पर कुछ पुछ बैठता है । आज मेरे साथ ऐसा ही कुछ हुआ ।

आज कुछ तो गाओ तुम साजन,
क्यों आज सुना तेरा फिर आँगन ।
चुप क्यों हो फिर तुम, यूँ मौन धरे,
तू गाता चल, ……

आज जब मैं ये पंक्तियाँ टाईप कर ही रहा था तो जीमेल पर जीतू जी का चाट मैसेज कुछ यूँ टपक पड़ा ।

जीतू: http://hindini.com/fursatiya/?p=312 tumko yaad kiya ja raha hai

चूँकि यह लिंक फुरसतिया से संबंधित था और वहाँ याद किये जाने कि बात हो रही थी तो मुझे पक्का लगा कि मेरी खिचाई हुई होगी मस्त । खैर एक क्लिक में रिश्ते बनने-बिगड़ने वाली इंटरनेट की दुनिया में मैंने भी बस क्लिक ही किया था कि मेरा पुरा दिमाग री-बुट हो गया ।

सच पुछिए तो उस समय कविता लिखने का मुड तो थोड़ा अजीब सा तो हूआ पर शुभ आश्चर्य हुआ कि मेरे कविता की पंक्तियों और वहाँ पर आपके लेख में काफी समानता ही दिखी । कविता में, मैं सोच रहा था एक ऐसे आँगन के बारे में – जो अभी शांत सा है – और उसकी चुप्पी शायद मुझे खलती है । और बस ऐसा ही दुसरी तरफ ऐसा ही मेरे लिए कोई सोच रहा है – मुझे विश्वास नहीं हो रहा था ।

हाँ तो अनूप भैया, आपका स्नेह निश्छल है । मैं वापस आ गया हिंदी चिट्ठाकारी में । जहाँ हाय – हैलो की सभ्यता से दूर एकदम गाँव का चौपाल, जहाँ कहीं कोई खैनी दबाकर दाँव ठोकता है तो कहीं किसी को पान चबाकर, चुपके से पीक फेंकने की कला भी आती है । तकनीकी भैया लोग कहीं नारद को हाई-टेक कर रहे हैं तो कहीं देबुदा निरंतर सबकी बातें करना चाहते हैं । रविजी और देबुदा के देशी दिल का पक्का लगन काबिले तारिफ है । भुल नहीं सकता कि जब भी जरुरत पड़ी इन्होनें सहायता की है मेरी ।

कहीं मैनें पूर्वी को खोया तो लगा – क्या मासुम रिश्ते भी भ्रम से हैं – हाय रे विधि का विधान । तो कहीं निराश मन को जगाकर कंधो का मजबुत करने की बात आयी, उन पर खेलने वाले जो आ गये है – मैं चाचाजी , मामाजी या यूँ कहें इंगलिश में अंकलजी बन गया हूँ ना ।

हाँ तो सच में मैं खोया था । रिश्ते खुद से बना रहा था । कुछ बातें दुसरों से समझ रहा था तो कुछ खुद को समझा रहा था । काफी संघर्षपूर्ण रहे आपसे बिछड़े दिन । लेकिन आज मुझे भी सुनने के लिए आप सब साथ हैं और क्या चाहिए मुझे । मै आपके साथ चलता जाऊँगा ।

आपका,
अधकटी पेंसिलवाला ।