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प्रिया का जन्मदिन

आज रात –
मैंने पूछा – क्या दूँ मैं ?
भेंट कल तुम्हें –
तुमहारे  जन्मदिन पर

सुनकर भी अनसुनी कर दी
कहकर की –
मुझे सोने दो – नींद आ रही है
वोह आँखें बंद कर सोई रही
नन्ही गुड़िया की तरह .

मैं देखता रहा –
उसकी बंद आँखों को
महसूस करता
मेरी खुली बाँहों में
उसकी स्निग्ध सांसें
और –
देखते ही देखते
घड़ी में बारह बज गए

वोह कुछ मांगी क्यों नहीं ?
या बस माँगा –
बस एक नींद –
हरेक साल –
मेरी बाँहों में
बस इसी तरह.

कृष्णसखा

कहीं नन्हें फुलों सा,
और नीली कलियों सा,
हाथों से सहेजकर,
हवाओं से बचाकर,
संबंधों को सहेजा है मैनें ।

मीठे स्वपनों सा,
अठखेली गीतों सा,
छिप गुनगुनाकर,
उसी हवा को सुनाकर,
सखाओं संग गाया है मैनें ।

जब कभी टुटे माला सा,
बिखरे मोती फुलों सा,
अनुभूति की डोर सजाकर,
फिर एक माला में बुनकर,
गोकुल में पहनाया है मैनें ।

लौटा दे मेरे दिन

उस दिन,
जय राम जी की । जय राम जी की ।
सब मंगल तो है ना। हाँ, उनकी कृपा है।
कैसी हो बहना । अच्छी हूँ भैया ।
कब आई घर से । कल ही आई हूँ ।

आज,
ओए… जोनी । अरे….यार… दीपक ।
किधर गया था बे। अबे वहीं गया था।
हाय…… स्वीटी। हैल्लो……मनीष ।
हाउ आर यू । कूल……. यार ।

क्या,
अपने हुए पराए । बेगाने कितने न्यारे ।
बातें मतलबी हुई । खोई हँसी स्माइली में ।
कहाँ खो गया ।ढूँढता पागलों सा मैं।
कम से कम तू ही, लौटा दे मेरे दिन ।